अह्ल-ऐ -सफ़र | Short Poem


हर दौर में रहते हैं,
नए दौर की तलाश में
सफ़र को दस्तूर बना रखा है
अपने ही ख़्वाबों को
अधर में , भंवर में ,
डूबने को छोड़
निकल पड़ते हैं, रोज,
नये सौर की तलाश में
यूँ ही गुरूर था हमें ,
अह्ल-ऐ -सफ़र पर “सुख़नवर”,
वो साथ तो चलते गए,
पर किसी और की तलाश में ।