हर छोटी बात आज कल रुला देती है,
कोई परेशान रहे, ये सह नहीं पता, जाने क्यों
पर खैर कौन किसी के ग़म में रोया है कभी
बेशक अपना ही कोई दर्द याद आता होगा
अश्क अब बहते नहीं है, धीरे धीरे सरकते हैं
डर है इन्हें, कि ये जो हजारों यादें क़ैद हैं हर कतरे में,
कहीं तकिए की सलवटों में डूब कर वजूद ना खो दें
शायद इसलिए कि कोई सुन्दर सपना ना जग जाए
थोड़ा रो लेने दो, जलती आंखों को कुछ राहत मिले
- Pratyush
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