तेरे इंतज़ार में कलियों ने जाने कितने मौसम देख लिए
इन्हें इनकी तकदीर बता दो, चाहे ख़िज़ा दो या बहार दो
अब तो यह भी याद नहीं रहा कि इंतज़ार किस वक़्त का है
ज़ुबाँ पर अटकी है जो बात, उसे कह दो या हलक से उतार दो
यूँ न छोड़ जाओ , जान बाकी है मेरे टुकड़ों में अभी
कोई तो जीने की वजह बताओ, या फिर पूरा ही मार दो ।
ठुकरा कर मुझे किसी ग़ैर पर तो ज़ुल्म नहीं करते
मैं तो तुम्हारा ही हूँ, तुम बर्बाद करो या सवाँर दो |
एक ठहरा हुआ लम्हा है “सुख़नवर”,
अब ये तुम पर है
एक पल में गुज़ार दो, या पूरी उम्र निसार दो।
- Pratyush
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