Akhiri Khat (आखिरी खत)


अश्कों की स्याही से लिखे कुछ ख़त , और मोड़ कर सिरहाने रख लिए| 
कुछ नज्में थीं , कुछ बातें थीं , कुछ आँखों में बीती रातें थी| 
दिल के चंद टुकड़े भी थे, जो अब सीने में चुभने लगे थे| 
कुछ साँसे थी बची हुई, मद्धम और बेवजह सी| 
कुछ लम्हे थे बरसों पुराने, जो अब तक गुज़र न सके थे 
वक़्त से टूट कर आये थे वो, मेरे ख़त में पनाह मांग रहे थे| 
एक लम्हा और भी था, छोटा सा , बहुत ही प्यारा 
उसमे एक हँसी थी, दबी सी, बंधी सी 
एक झोंका था ठंडी बयार का , 
रंग था उस लम्हे में, “सुख़नवर” , 
यही तो रंग था मेरी आँखों का भी | 
कुछ रोज़ हुए वो ख़त लिखे हुए, 
अब तो शायद हर्फ़ भी मिट चले होंगे, 
हर आरज़ू की तरह, चुप चाप | 
उन पन्नों को तकिये में दफ़न कर आया हूँ, 
बचे हुए अश्कों के साथ, 
पहलू में खुद को सोता हुआ छोड़ आया हूँ |

- Pratyush