चिंता चिता के समान है | Pratyush

हमारा मस्तिष्क एक बेहद कीमती तोहफा है | यह बहुत अच्छी तरह से यादों को संजो कर रखता है | वे सारी जानकारियां और सारे एहसास जिनसे यह गुजरा है | 


पर ये सारी यादें एक बहुत बड़ी कल्पना में तब्दील हो जाती हैं और यदि आप इस कल्पना पर अंकुश नहीं रख सके, अगर आप यह अंतर भूल गए कि क्या कल्पना है और क्या वास्तविकता, क्या भविष्य है, क्या वर्तमान हैं और क्या भूतकाल है , तो आपका दिमाग ही आपका सबसे बड़ा दुश्मन बन जाएगा | 


अक्सर मनुष्य जिंदगी से नहीं, बल्कि अपनी कल्पना और अपनी यादों से ज्यादा परेशान रहता है | जो 10 साल पहले हुआ उससे वह आज तक दुखी हैं |  जो 10 साल बाद होने वाला है उससे भी वह आज ही परेशान हैं |  इस परेशानी का कारण जीवन नहीं है |   यह अपनी कल्पना पर अंकुश ना लगाने का परिणाम है | उन दो अद्भुत योग्यताओं पर अंकुश न लगा पाने का परिणाम है जो इंसान के सबसे बेहतरीन तोहफे हैं | एक याद रखने की क्षमता और दूसरी कल्पना | अपना वर्तमान अच्छे से संवार लिया तो भविष्य अपने आप सुरखित हो जाएगा | हम सिर्फ उसी पर काम कर सकते हैं जो हमारे हाथ में हैं | हम उस पर कुछ नहीं कर सकते जो सिर्फ हमारे दिमाग में है | हम सिर्फ भविष्य की योजनाएं बना सकते हैं पर हमारे हाथ में तो सिर्फ अभी का यह क्षण की है | 


वह लोग जो अपनी कल्पनाओं और सोच में बहुत ज्यादा डूबे हुए हैं, चाहे इसका कारण बहुत ज्यादा सोशल मीडिया का इस्तेमाल हो या ऑफिस, उन लोगों को कुछ क्षण के लिए अपने फोन और लैपटॉप को किनारे पर रखकर वादियों में एक सैर के लिए निकल जाना चाहिए | अगर यह हर रोज संभव नहीं है कम से कम महीने में एक बार या दो बार आपको पहाड़ों में या जंगलों में कहीं खो जाना चाहिए | अकेले टहलें, बैठे, अवलोकन करें | अगर आप ध्यान देंगे तो वशीभूत हो जाएंगे उस हर एक छोटी चीज से जो आपके आसपास है क्योंकि जिस तरह से एक छोटी सी चींटी भी बनाई गई है वह भी इतना जटिल है हमारे दिमाग और हमारी समझ के लिए कि हम उसे भी पूरी तरह समझ नहीं सकते | अगर हम सिर्फ अपने मस्तिष्क द्वारा रची हुई कल्पना में ही जीते रहेंगे तो सृष्टि में ईश्वर की जितनी कल्पनाएं हैं उन्हें हम देखी नहीं पाएंगे और पूरी दुनिया के अनुभव से वंचित ही रह जाएंगे | इस तरह से तो हम सिर्फ कल्पना में ही जीते रह जाएंगे असल में जिंदगी तो हमने जी ही नहीं| 

हम बहुत कुछ जानते हैं | हम बहुत कुछ कर सकते हैं | पर हम किसी भी चीज को पूरी तरह नहीं जानते, पूरी तरह नहीं समझते | हमारे अस्तित्व का मूल रूप यही है | अगर हम सृष्टि पर ध्यान देंगे तो हमारी खुद की कल्पना और सोच इसी में विलीन हो जाएगी | हम तब भी इनका आनंद ले सकते हैं, पर हमें पता होगा कि इनका असली महत्व कितना कम है | इसलिए यह बहुत जरूरी है कि अगर हम जिंदगी के हर पहलू का आनंद लेना चाहते हैं तो हमें गंभीरता छोड़नी होगी | हम तभी गंभीर होते हैं जब हम अपने अस्तित्व को बहुत ज्यादा गंभीरता से लेते हैं | हम इस धरती पर सिर्फ एक क्षण के लिए जीते हैं | यह बहुत विशाल ब्रह्मांड है, हमारा खुद का ग्रह उसका एक कतरा भर भी नहीं है | इस पूरे ग्रह के लिए हमारा शहर भी एक बूंद बराबर है और इस छोटे से शहर में छोटा सा इंसान खुद को बहुत बड़ा समझने लगता है | हमारे पास बहुत थोड़ा सा समय है जिसे हम जीवनकाल कहते हैं | इसमें भी अगर हम खुद को बहुत ज्यादा गंभीरता से लेंगे तो हम सिर्फ एक मजाक बनकर रह जाएंगे | जीवन का जीवन का आनंद लेने का सबसे अच्छा तरीका है कि इससे बिना किसी गंभीरता के जिया जाए | 


पर साथ ही साथ इसमें इतना डूब कर रहे जैसे कि किसी खेल में एक खिलाड़ी डूबा रहता है | हमें जिंदगी को भी एक खेल की तरह जीना है | हम ऐसा कर सके उसके लिए यह जरूरी है कि हम अपने अस्तित्व को वर्तमान काल के परिणाम के रूप में देखें पर एक शाश्वत परिणाम के रूप में नहीं | तब तक नहीं जब तक हम अपने जीवन के शाश्वत रूप को पहचान न लें |  इस छोटी सी जिंदगी में अगर हम सिर्फ वही करें जो हमारे लिए महत्व रखता है, तभी असल में हमारी जिंदगी का कुछ अस्तित्व होगा | अगर हम जो भी करते हैं उसमें पूरी तरह डूब जाएँ, तभी हम उसको अपना संपूर्ण दे सकेंगे और यह तभी हो सकता है जब या तो हम उस एक चीज को खोज पाए जिसके लिए हम सब कुछ दे सकते हैं | पर कई लोग अपनी आधी जिंदगी इसी सोच में निकाल देते हैं कि मेरा असली जुनून क्या है | इससे ज्यादा आसान है की आप दुनिया की हर चीज को, हर इंसान को अपना मान लें | जब सब कुछ आपका खुद का है, पूरा ब्रह्मांड आपका हो जाता है, जब यह आपका खुद का हिस्सा है, तो आप हर चीज़ पर अपना सर्वस्व निछावर कर देते हैं, बिना किसी आशा के |  ऐसा करने से सिर्फ हमारे कार्य और हमारी उपलब्धियां ही नहीं हमारा अस्तित्व भी महत्वपूर्ण हो जाता है |